मिथिलांचल का एक अपना अनोखा पर्व है चौठचन्द्र | इस पर्व में चन्द्रमा की पूजा की जाती है |
चौरचन - बिहार, उड़ीशा, बंगाल और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है |
छठ की तरह ही चौरचन भी लोक आस्था का पर्व है और इसे समाज के सभी वर्ग स्त्री पुरुष समान रूप से मनाते हैं ।
भाद्र शुक्ल पक्ष के चतुर्थी अथवा गणेश चतुर्थी के सायं काल में चंद्रोदय के साथ ही यह पर्व मनाया जाता है ।
यह पर्व मिथिला पंचांग के अनुसार भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो अगस्त सितम्बर के महीनों में पड़ता है।
दिन में गणेश पूजा के बाद पकवान बनते हैं | घर के सभी सदस्य अपने इच्छा अनुसार जल फल आरती धुप दीप रखते हैं | पूजा करने वाले स्त्री-पुरुष बच्चे हाथ में खीर पूरी फल लेकर चन्द्रमा को दिखाते हैं | प्रायः परिवारजन घर के खुले आँगन अथवा छत पर एक विशेष जगह को स्वच्छ करते हैं जहाँ से चंद्र दर्शन होगा
गाँव घर में लोग आँगन को मिट्टी या गोबर से नीपते हैं और पिठार से अरिपन बनाते हैं |
पूरी-पकवान, फल, मिठाई, दही इत्यादि को अरिपन पर सजाया जाता है और चंद्रोदय के समय एक एक कर उन्हें हाथ से उठाया जाता है और भोग लगया जाता है |
चौरचन के लिए खीर पूरी खीरा सेब केला आदि विशेष हैं।
इन प्रसादों को पूरी पवित्रता और श्रद्धा के साथ तैयार किया जाता है।
चौरचन सामुदायिक एकता और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
इस पर्व के दौरान बड़ी संख्या में लोग अपने घरों पर साथ में खड़े होकर पूजा करते हैं ।
चौरचन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मिथिलांचल की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी प्रदर्शित करता है। इस पर्व के दौरान की जाने वाली अनुष्ठानों और परंपराओं में निहित श्रद्धा और समर्पण लोगों के जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करती है।
जहाँ भारतवर्ष में चतुर्थी के चन्द्रमा को कलंकित मान प्रत्यक्ष नहीं देखा जाता है वहीं चौरचन इसके विपरीत चन्द्रमा को देखकर उपासना करता है |